जुगजुग जियो बेटा, सफल होकर आना,,,,यही दुआ दी होंगी हर उस मां ने, जिसने शाहजहांपुर ट्रेन हादसे में अपने सपूत को खो दिया। उस मां को क्या मालूम था कि जिस बेटे की खुशी और उज्जनवल भविष्य के लिए घर से बाहर भेज रही है, वह कभी लौटकर वापस ही नहीं आएगा। बेरोजगारी और अव्यवस्था ने एक बार फिर कई मां-बाप के सपनों को तार-तार कर दिया। बरेली में आईटीबीपी की भर्ती देखने करीब 12 राज्यों के लाखों छात्र एकत्रित हुए थे। ऐसा पहली बार नहीं था जब अपनी बेरोजगारी को दूर करने के लिए इतनी बड़ी संख्या में छात्र अपने-अपने शहरों से दूसरे शहरों में गए हों। खुली भर्ती ही नहीं रेलवे, बैंक और बहुत सी परीक्षाओं के परीक्षा केंद्र अक्सर कुछ गिने-चुने शहरों को बनाया जाता है। जबकि इनमें सम्मिलित होने के लिए देश के हर कोने से छात्र इन शहरों में आते हैं। इन परीक्षाओं से एक से दो दिन पहले स्टेशन से लेकर फुटपाथ तक में खुले आसमां के नीचे इन छात्रों को अपने सुनहरे भविष्य के सपनों को बुनते देखा जा सकता है। दिन-रात का सफर तय करके ये छात्र सिर्फ इस उम्मीद के साथ परीक्षा में सम्मिलित होने आते हैं कि इसमें सफल होकर एक दिन वह अपने मां-बाप का सहारा बनेंगे और देश की सेवा करेंगे। लेकिन इन छात्रों की सुरक्षा की जरूरत ना तो इन भर्ती और परीक्षाओं को आयोजित करने वाली संस्थाओं को महसूस होती है और ना ही सरकार और प्रशासन को। और वह बेबस मां बाप भी क्या करें जो ना चाहते हुए भी अपने जिगर के टुकड़े को खुद से दूर उस भीड़ में जाने देते हैं, जिसमें अपनी संतान को खोने का डर उन्हें तब तक सताता रहता है जब तक वह सही सलामत वापस नहीं आ जाता।
इतनी बड़ी संख्या में छात्रों का एक शहर से दूसरे शहर में आने-जाने के लिए सरकार भी परिवहन की कोई व्यवस्था नहीं करती। घर लौटन की जल्दी और साधन ना मिलने की वजह से अक्सर छात्र कुछ ऐसा करने को मजबूर हो जाते हैं जो नियम-कानून के खिलाफ होता है। माना कि जवानी के जोश में वे कुछ गलतियां करते हैं जिसका खामियाजा उन्हें इस तरह के हादसों में जान देकर चुकाना पड़ता है लेकिन इसके लिए पूरी तरह उन्हेंं दोषी नहीं ठहराया जा सकता। अगर वह कुछ गलत कर रहे थे तो बरेली से इतनी दूर का सफर करने के दौरान उन्हें रोका क्यूं नहीं गया। ये काम तो प्रशासन का था। िफर प्रशासन ने अपनी ड्यूटी पूरी क्यों नहीं की। अगर प्रशासन उनके आने-जाने की समुचित व्यवस्था करे तो इस तरह के हादसों को रोका जा सकता है। साथ ही परीक्षा आयोजित करने वाली संस्थाएं जो परीक्षा फीस के नाम पर छात्रों से वसूली करती है, वह उसका प्रयोग सेंटर बढ़ाने में या परीक्षा को कई पारियों में आयोजित कराने में क्यों नहीं करतीं। अगर इस दिशा में जल्द ही कोई कदम नहीं उठाया गया तो शायद एक दिन मां बाप अपने बच्चों को इन परीक्षाओं में भेजने के बजाए घर पर बैठाना ज्यादा उचित समझेंगे। और अगर ऐसा होता है तो जिस देश की प्रतिभा का गुणगान प्रधानमंत्री विदेशों में करने से नहीं चूकते वह अपने ही देश में कहीं ढूंढने पर भी नहीं मिलेगी।
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