सोमवार, 29 जून 2009

जींस पर सरकार की मोहर


भारत एक लोकतांत्रिक देश है. यहाँ सभी को सामान अधिकार है,चाहे वह लड़की, लड़का या किसी भी धर्म जाती का हो.लेकिन हमारे समाज में लड़कियों को हमेशा उनके अधिकारों से वंचित रखा गया है.कालेज में छात्राओ के लिए ड्रेश कोड लागू करके उनके अधिकारों का हनन किया गया है .इस प्रकरण ने लोकतंत्र की छवि को धूमिल किया है.हालाँकि सरकार ने ड्रेश कोड नियम को हटते हुए,समाज के ठेकेदारों को जो चेतावनी दी है वह कबीले तारीफ है.छात्राओ को सुरक्षा प्रदान करने के लिए उन्हें ड्रेश कोड तथा घरो में कैद करना,हमारे समाज तथा कानून व्यवस्था की नपुंसकता की देन है.समाज में महिलाओ की सुरक्षा की स्थिति आज भी बहुत कमजोर है .
आज हम संसद में महिलाओ को रिज़र्वेशन तथा समाज में बराबरी का दर्जा देने की बात कर रहे है.लेकिन आज भी हमारे समाज में ऐसे लोग है, जो सामंतवादी विचारधारा की जंजीरों में जकडे हुए हैं,और महिलाओ को घर की दहलीज तक ही सीमित रखना चाहते हैं.ऐसे ही लोग समाज में शिष्टाचार एवं मर्यदा बनाए रखने की जिम्मेदारी महिलाओ पर थोपते हैं .बलात्कार जैसे मामलो में दोष भले ही पुरुष का हो इज्जत महिला की ही जाती है,क्यों? गौरतलब है की हमारा शब्दकोष ही महिलाओ के विरूद्ध है. आज भी घर पर जब कोई महिला आकेली होती है,और घर के बहार कोई अजनबी आवाज लगता है ,तो उसका जवाब होता है "घर पर कोई है नही बाद में आना " क्या उस महिला का कोई अस्तित्व नही?जो घर पर होते हुए भी कहती है कोई नही है .
बात बहुत छोटी है लेकिन सचाने वाली है . महिलाओ को बचपन से ही अनगिनत नियमो और मर्यादाओ में बांध दिया जाता है,और इन्ही नियमो और मर्यादाओ को निभाते -निभाते वो खुद को भी भुला देती है .जीवन भर बलिदान देने वाली नारी को हमारा समाज क्या दे रहा है ?