बुधवार, 9 सितंबर 2015

हम भ्‍ाारतीय होने पर गर्व करते हैं और वो हम पर राज करते हैं।


कुछ दिन पहले एक वीडियो फेसबुक पर खूब शेयर हुआ। 15 अगस्‍त के अास पास । वीडियो में एक दंपति शाम के समय अपनी बाइक पर जाते नजर अाते हैं। तभी पी‍छे से एक अंग्रेज उन्‍हें अपनी कार से टक्‍कर मार देता है। बुरी तरह घायल दंपत्ति पास के एक रेस्टोरेंट में पानी और प्राथमिक उपचार के लिए घुस जाते हैं। वहां पर ज्‍यादातर अंग्रेज होते हैं। भारतीय दंपति को घायल अवस्‍था में देखकर वहां के अग्रेंज मैनेजर को गुस्‍सा आ जाता है और उन्‍हें रेस्‍टोरेंट से धक्‍का मारकर बाहर निकाल देता है। जिसे देखकर आपके मन में अंग्रेजों के प्रति घ्रणा का भ्‍ााव आता है।

इस वीडियो को देखकर अापको एक बारगी एेसा लगेगा जैसे यह घटना किसी अन्‍य देश में घटित हुई है लेकिन अगले ही पल स्‍क्रीन पर नजर अाने वाला मैसेज आपको बताएगा कि अगर हम आजाद नहीं हुए होते तो आज भारत में हमारी स्थिति कुछ ऐसी ही होती। हम अपने ही देश में बेगाने से होते। दूसरे अर्थों में कहें तो अापको आजादी के महत्‍व को समझाने और एक लोकतांत्रिक देश का नागरिक होने पर गर्व करने के लिए प्रेरित करने का प्रयास किया गया इस वीडियो में।

हमें अंग्रेजों के राज से आजादी मिली, अच्‍छी बात है। लेकिन सवाल यह उठता है कि बार बार इस बात को याद दिलाकर हमें इस बात पर गर्व करने के लिए सरकार प्रेरित क्‍यों करना चाहती है। हाल ही में संघ को मोदी सरकार द्वारा इस बात का आस्‍वासन दिया गया है कि वो देश के शिक्षा पाठ्यक्रम में ऐसे बदलाव करेंगे जिससे भारतीयता और भ्‍ाारतीय गौरव को बढ़ावा मिले। इस बदलाव के तहत भारत अौर पड़ोसी देशों के बीच हुए युद्धों से जुड़े अध्‍यायों को पाठ्यक्रम में शामिल किया जाएगा।

देश के नागरिकों में भारतीयता को बढ़ाने के इन जैसे कई अौर प्रयासों को आप गौर से देखेंगे तो पाएंगे कि ये एक ओर तो यह आपको भारतीयता पर गर्व करने को प्रेरित करते हैं वहीं दूसरी ओर किसी दूसरे देश, संस्‍कृति या धर्म के प्रति घ्रणा का भ्‍ााव पैदा करते हैं। अाखिर इसकी आवश्‍यकता क्‍या है? क्‍या लोग ये भूल रहे हैं वो किस देश के नागरिक हैं? या उनका इस लोकतांत्रिक व्‍यवस्‍था पर विश्‍वास ढगमगाने लगा है, जिसे पुन: कायम करने के लिए इस तरह के प्रयासों की जरूरत महसूस हो रही है।

अगर ऐसा हो रहा है तो उससे नुकसान किसका होगा? जाहिर है उनका जो इसे बढ़ाने के लिए जी जान से जुटे हैं। जो जय जवान यह किसान के नारे लगाकर वोट लेकर सत्‍ता हासिल कर लेते हैं। लेकिन जब वही जवान वन रैंक वन पेंशन की मांग करते हैं या किसान अपनी जमीन न लेने की गुहार लगाते हैं तो उन्‍हें लाठियों से पिटवाते हैं। जिनके लिए सत्‍ता में अाने से पहले जनता और जनता के मुद्दे ही सबकुछ होते हैं और सत्‍ता में आने के बाद वे मुद्दे बस मुद्दे बनकर ही रह जाते हैं।

वास्‍तव‍िकता यह है कि भारतीय गौरव की इस भावना से एक आम आदमी के जीवन में कोई फर्क नहीं पढ़ता। हां, इस तथाकथ‍ित लोकतांत्रिक व्‍यवस्‍था में सत्‍ता को हथ‍ियाने और जनता पर शासन करने के लिए बहुत जरूरी है कि जनता का विश्‍वास इस पर कायम रखा जाए। ये सारे प्रयास अपनी सत्‍ता पाने की उस व्‍यवस्‍था को सुरक्षित बनाए रखने के लिए है जो पूंजीपतियों की जागीर है। अगर यकीन न हो तो कभी गंदे अौर भद्दे कपड़ों में किसी पांच सतारा होटल में घुसकर देखिए आपको उसी तरह बाहर फेक दिया जाएगा जैसे वीडियो में उस घायल दंपति को उन अंग्रेजों ने फेका।

किसानों की जान से जरूरी मीट पर बैन।

महाराष्‍ट्र में पिछले एक हफ्ते में 30 से ज्‍यादा किसानों ने अात्‍महत्‍या कर ली। इस साल अब तक कुछ 660 किसानों ने अार्थिक तंगी से परेशाान होकर खुद को मौत के हवाले कर लिया है। पिछले साल यह संख्‍या 628 थी। अपने हाथों में तख्‍ती लिए किसान गांव की पगडंडियों में ध्‍ारना दे रहे हैं। उन्‍हें लगता है कि शायद इन पगड़डियों से गुजरता कोई पत्रकार या नेता उनकी अावाज को सरकार तक पहुंचा देगा और बद से बदतर होती उनकी हालत के सुधार के लिए कोई सुध लेगा। बादलों के घिरते ही उन्‍हें धरना छोड़ अपने खेतों की अोर भागना पड़ता है जहां पड़ा अनाज सड़ने की कगार पर है। कुछ मौसम की मार ने उन्‍हें बर्बाद किया अब जो कुछ फसल बची है उसे सरकार खरीद नहीं रही है। बारशि में सड़ती उनकी फसल पर शराब और पैकेजिंग इंडस्‍ट्री गिद्द की तरह नजर गड़ाए बैठी है कि कब उनकी हिम्‍मत जवाब दे और वो खून पसीने से सीचकर पैदा की गई अपनी फसल को कौड़ियों के भाव उनके हाथ बेचे।

किसानों के हालत की ये बानगी पढ़कर शायद आपको थोड़ा दुख हो लेकिन अगले ही पल अगर मैं आपसे देश की सबसे बड़ी समस्‍या पूछूं तो शायद आपका जवाब भ्रष्‍टाचार, आरक्षण, राजनीति या संसद का न चलना होता। किसी गजेंद्र की मौत के साथ किसानों की समस्‍या मीडिया के लिए देश की सबसे बड़ी समस्‍या बनती है अौर सनी लियोन पर किसी मंत्री के बयान के बाद वो अंदर के किसी पन्‍ने पर एक कॉलम तक सिमटते हुए खबरों के इस संसार में कहीं खो जाती है। अखबार की सुर्खियों से गायब होते ही हमारे लिए उस समस्‍या का समाधान हो जाता है। लेकिन वास्‍तवतिकता यह है कि गांवों की पगड़डियों में बैठे किसान शाम को ढलता देखते हुए रोज सर झुकाए अपने घर चले जाते हैं और अगले दिन का अखबार पलट पलट कर देखते हैं कि कहीं ि‍कसी ने उनकी सुध ली या नहीं।

सालों से यही होता आ रहा है आगे भी यही होता रहेगा। मुआवजे के रूप में दो रुपए का चेक देकर उनका मजाक उड़ाओ। उन्‍हें मरने की कगार तक तो पहुंचा ही दिया है। सिलसिला जारी है। और शायद तब तक जारी रहेगा जब तक किसान यह बात स्‍वीकार न कर लें कि किसानी फायदे का सौदा नहीं है। जमीन बेकार की चीज है। इसे बेच देना ही बेहतर है। सरकार ठीक ही कहती है जमीन खेती के लिए नहीं मल्‍टीप्‍लेक्‍स अौर इंडस्‍ट्रीज के लिए है। यही विकास है। किसान इस विकास में बाधक है। अच्‍छा है वो खुद विकास के रास्‍ते से हट रहे हैं। जब वो हटना बंद कर देंगे तो सरकार उन्‍हें हटाने का काम शुरू करेगी। तब हमारे अापके लिए देश की सबसे बड़ी समस्‍या किसान होंगे ठीक उसी तरह जैसे आज आतंकवाद है।