बुधवार, 29 दिसंबर 2010

आजादी विचारों की,,,

आज बहुत दिन बाद इस ब्लॉग के दिन बहुरेंगे, लगभग एक साल के बाद आज इसमें कोई ब्लॉग पोस्ट होगा। ख्याल तो बहुत आते रहे लेकिन उन्हें यहां तक लाने का समय नहीं मिला। नेट पर रोजाना घंटो बीतते रहे, कभी-कभार मन भी किया कि कुछ लिखूं लेकिन फिर ना जाने क्यूं की-बोर्ड पर हाथ ही नहीं चले।
आज मेरे एक साथी ने एक सुझाव दिया, जो दिल करे उसे ब्लॉग पर लिख डालो। हां, शायद ब्लॉग का मतलब भी तो यही है, जो दिल में आए, जो अच्छा लगे, जो ना अच्छा लगे, सब यहां उतार दो। हम आजाद हैं, अपनी खुशी, अपने गम, अपने विचार को दुनिया के सामने रखने के लिए। तो आज से एक नई शुरुआत, झरोखा मेरे मन के साथ,,,,,,,,,
आज के लिए फिलहाल इतना ही बहुत जल्दझ फिर मुलाकात होगी।

शनिवार, 27 मार्च 2010

जरा आराम से वरना………..


बड़े- बडे़ क्रिमिनल्‍स और घूसखोरों को घुटने टेकने पर मजबूर करने वाले रिपोर्टर और सब-एडिटर्स आज कल जब तब जमीन पर नजर आ रहें हैं। ये सिलसिला सिर्फ इन्‍ही तक सीमित नहीं है, इसमें आि‍‍फस का एडमिनिस्‍ट्रेटिव स्‍टाफ भी शामिल है। 1 मिनट आप कुछ और तो नहीं सोच रहे, अगर सोच रहें तो अपने दिमाग को थोड़ा विराम दें और आंखो को आगे के मैटर पर दौड़ाए।
हुआ यूं कि तीन साल आि‍‍फस का बोझ उठा रहीं वहां की कुर्सियां अब जवाब देने लगीं हैं। उस पर भी लोगों को उन पर रहम नहीं आता पूरे दिन का गुस्‍सा बेचारी उन कुर्सियां पर उतारा जाता है। आए और पूरे जोश के साथ खुद को उन बेचारी कुर्सियों पर दे मारा। आखिर वे ये सब कब तक सहती सो उन्‍होनें भी सबक सिखाना शुरू कर दिया। कभी इसको पटकती हैं तो कभी उसको लेकिन फर भी ना लोगों का जोश कम हो रहा है और ना लोगों का आए दिन लोगों का गिरना। समझो उन बेचारी कुर्सियों की पीढ़ा को क्‍योंकि अगर अभी-भी नहीं समझे तो वे आपको पीढ़ा देने लगेंगी।
धन्‍यवाद !