इंटरनेट भी एक अजीब भूल भुलैया है, कभी काम की चीज ढ़ूढो तो घंटों बीत जाने पर भी नहीं िमलती और फोकट में उंगलियां चटकाने पर ऐसी चीज मिल जाती है कि उंगलियां तोड़ना सार्थक लगने लगता है ऐसा ही कुछ हुआ यूंही बैठा एक सॉफ्टवेयर सर्च कर रहा था लेकिन मिला एक लेख किसने लिखा इसका लेखा जोखा तो नहीं मिला लेकिन है बहुत मजेदार,,,,,भगीरथ के बारे में। भगीरथ मुनि को तो जानते ही होंगे। अरे वहीं जिनकी लायी गंगा में हम आज तक अपने पाप धुल रहे हैं । क्योंेकि गंगा में पाप की माञा के साथ केमिकल भी बढ़ गए तो बेचारे इस कलयुग में चले आए समाज सेवा करने, गंगा को दोबारा लोन के िलए यानी गंगा पार्ट टू और िफर जो ट्रेजडी हुई उनके साथ वह आप खुद ही पढ़ लीजिए….
भगीरथ स्वर्ग में लंबी साधना के बाद जब चैतन्य हुए, तो उन्होने पाया कि भारतभूमि पर पब्लिक पानी की समस्या से त्रस्त है। समूचा भारत पानी के झंझट से ग्रस्त है। सो महर्षि ने दोबारा गंगा द्वितीय को लाने की सोची। महर्षि भारत भूमि पर पधारे और मुनि की रेती, हरिद्वार पर दोबारा साधनारत हो गये।
मुनि की रेती पर एक मुनि को भगीरथ को साधना करते देख पब्लिक में जिज्ञासा भाव जाग्रत हुआ।
छुटभैये नेता बोले कि गुरु हो न हो, जमीन पक्की कर रहा है। ये अगला चुनाव यहीं से लड़ेगा। यहां से एक और कैंडीडेट और बढ़ेगा। बवाल होगा, पुराने नेताओं की नेतागिरी पर सवाल होगा।
पुलिस वालों की भगीरथ साधना कुछ यूं लगी-हो न हो, यह कोई चालू महंत है। जरुर साधना के लपेटे में मुनि की रेती को लपेटने का इच्छुक संत है। तपस्या की आड़ में कब्जा करना चाहता है।
खबरिया टीवी चैनलों को लगा है कि सिर्फ मुनि हैं, तो अभी फोटोजेनिक खबरें नहीं बनेंगी। फोटोजेनिक खबरें तब बनेंगी, जब मुनि की तपस्या तुड़वाने के लिए कोई फोटोजेनिक अप्सरा आयेगी। टीआरपी साधना में नहीं, अप्सराओं में निहित होती है। टीवी पर खबर को फोटूजेनिक होना मांगता।
नगरपालिका वालों ने एक दिन जाकर कहा-मुनिवर साधना करने की परमीशन ली है आपने क्या।
भगीरथ ने कहा-साधना के लिए परमीशन कैसी।
नगरपालिका वालों ने कहा-महाराज परमीशन का यही हिसाब-किताब है। आप जो कुछ करेंगे, उसके लिए परमीशन की जरुरत होगी। थोड़े दिनों में आप पापुलर हो जायेंगे, एमपी, एमएलए वगैरह बन जायेंगे, तो फिर आप परमीशन देने वालों की कैटेगरी में आयेंगे।
भगीरथ ने कहा-मैं साधना तो जनसेवा के लिए कर रहा हूं। सांसद मंत्री थोड़े ही होना है मुझे।
जी सब शुरु में यही कहते हैं। आप भी यही कहते जाइए। पर जो हमारा हिसाब बनता है, सो हमें सरकाइये-नगरपालिका के बंदों ने साफ किया।
देखिये मैं साधु-संत आदमी हूं, मेरे पास कहां कुछ है-भगीरथ ने कहा।
महाराज अब सबसे ज्यादा जमीन और संपत्ति साधुओं के पास ही है। न आश्रम, न जमीन, न कार, न नृत्य की अठखेलियां, ना चेलियां-आप सच्ची के साधु हैं या फोकटी के गृहस्थ। हे मुनिवर, आजकल साधुओं के पास ही टाप टनाटन आइटम होते हैं। दुःख, चिंता ,विपन्नता तो अब गृहस्थों के खाते के आइटम हैं-नगरपालिका वालों ने समझाया।
भगीरथ यह सुनकर गुस्सा हो गये और हरिद्वार-ऋषिकेश से और ऊपर के पहाड़ों पर चल दिये।
भगीरथ को बहुत गति से पहाड़ों की तरफ भागता हुआ सा देख कतिपय फोटोग्राफर भगीरथ के पास आकर बोले –देखिये, हम आपको जूते, च्यवनप्राश, अचार कोल्ड ड्रिंक, चाय, काफी, जूते, चप्पल जैसे किसी प्राडक्ट की माडलिंग के लिए ले सकते हैं।
पर माडलिंग क्या होती है वत्स-भगीरथ ने पूछा।
हा, हा, हा, हा हर समझदार और बड़ा आदमी इंडिया में माडलिंग के बारे में जानता है। आप नहीं जानते, तो इसका मतलब यह हुआ कि या तो आप समझदार आदमी नहीं हैं, या बडे़ आदमी नहीं हैं। एक बहुत बड़े सुपर स्टार को लगभग बुढ़ापे के आसपास पता चला कि उसकी धांसू परफारमेंस का राज नवरत्न तेल में छिपा है। एक बहुत बड़े प्लेयर को समझ में आया कि उसकी बैटिंग की वजह किसी कोल्ड ड्रिंक में घुली हुई है। आप की तेज चाल का राज हम किसी जूते या अचार को बना सकते हैं, बोलिये डील करें-फोटोग्राफरों ने कहा।
देखिये मैं जनसेवा के लिए साधना करने जा रहा हूं-भगीरथ ने गुस्से में कहा।
गुरु आपका खेल बड़ा लगता है। बड़े खेल करने वाले सारी यह भाषा बोलते हैं। चलिये थोड़ी बड़ी रकम दिलवा देंगे-एक फोटोग्राफर ने कुछ खुसफुसायमान होकर कहा।
जल संकट से द्रवित होकर जनता को परेशानी से निजात दिलाने के लिए गंगा द्वितीय को पृथ्वी पर लाने का उपक्रम करने लगे। इसके लिए वह हरिद्वार के पास मुनि की रेती पर साधनारत हुए तो नगरपालिका वालों ने, नेताओं ने और दूसरे तत्वों ने उन्हे परेशान किया। वह परेशान होकर ऊपर पहाड़ों पर जाने लगे, तो कई फोटोग्राफरों ने उनके सामने तरह-तरह के आइटमों के माडलिंग के प्रस्ताव रखे। फोटोग्राफरों ने उनसे कहा कि इस तरह की जनसेवा के पीछे उनका जरुर बड़ा खेल है और इस खेल के साथ वे चार पैसे एक्स्ट्रा भी कमा लें, तो हर्ज नहीं है।अब आगे पढ़िये समापन किस्त में।)
देखिये, ये क्या खेल-खेल लगा रखा है। क्यां यहां बिना खेल के कुछ नहीं होता क्या-भगीरथ बहुत गुस्से में बोले।
जी बगैर खेल के यहां कुछ नहीं होता। यहां गंगा इसलिए बहती है कि वह गंगा साबुन के लिए माडलिंग कर सके। गोआ में समुद्र इसलिए बहता है कि वह गोआ टूरिज्म के इश्तिहारों में काम आ सके। हिमालय के तमाम पहाड़ इसलिए सुंदर हैं कि उन्होने उत्तरांचल टूरिज्म, उत्तर प्रदेश टूरिज्म के इश्तिहारों में माडलिंग करनी है। आपकी चाल में फुरती इसलिए ही है कि वह किसी चाय वाले या च्यवनप्राश वाले के इश्तिहार में काम आ सके। आपके बाल अभी तक काले इसलिए हैं कि वे नवरत्न तेल के इश्तिहार के काम आ सकें। हे मुनि, डाल से चूके बंदर और माडलिंग के माल से चूके बंदों के पास सिवाय पछतावे के कुछ नहीं होता-एक समझदार से फोटोग्राफर ने उन्हे समझाया।
भगीरथ मुनि गु्स्से में और ऊंचे पहाड़ों की ओर चले गये।
कई बरसों तक साधना चली।
मां गंगा द्वितीय प्रसन्न हुईं और एक पहाड़ को फोड़कर भगीरथ के सामने प्रकट हुईं।
जिस पहाड़ को फोड़कर गंगा प्रकट हुई थीं, वहां का सीन बदल गया था। बहुत सुंदर नदी के रुप में बहने की तैयारी गंगा मां कर ही रही थीं कि वहां करीब के एक फार्महाऊस वाले के निगाह पूरे मामले पर पड़ गयी।
वह फार्महाऊस पानी बेचने वाली एक कंपनी का था।
गंगा द्वितीय जिस कंपनी के फार्महाऊस के पास से निकल रही हैं, उसी कंपनी का हक गंगा पर बनता है, ऐसा विचार करके उस कंपनी का बंदा भगीरथ के पास आया और बोला कि गंगा पर उसकी कंपनी की मोनोपोली होगी। वही कंपनी गंगा का पानी बेचेगी।
तब तक बाकी पानी कंपनियों को खबर हो चुकी थी।
बिसलेरी, खेंचलेरी, खालेरी, पालेरी, पचालेरी, फिनफिन, शिनशिन,छीनछीन समेत सारी अगड़म-बगड़म कंपनियों के बंदे मौके पर पहुंच लिये।
हर कंपनी वाला भगीरथ को समझा रहा था कि वह उसी की कंपनी को ज्वाइन कर ले। मुंहमांगी रकम दी जायेगी। गंगा द्वितीय उस कंपनी की संपत्ति हो जायेगी और भगीरथ को रायल्टी दे दी जायेगी।
पर भगीरथ नहीं माने। वह गंगा द्वितीय को जनता को समर्पित करना चाहते थे।
किसी कंपनी वाले की दाल नहीं गली।
पर……….।
सारी कंपनियों के बंदों ने आपस में खुसुर-पुसर की। खुसर-पुसर का दायरा बढ़ा, नगरपालिकाओं वाले आ गये। माहौल और खुसरपुसरित हुआ-भगीरथी की फ्यूचर पापुलरिटी की सोचकर आतंकित-परेशान नेता भी आ लिये। वाटर रिस्टोरेशन के लिए काम कर रहे एनजीओ के बंदे भी इस खुसर-पुसर में शामिल हुए।
फिर ………..भगीरथ गिरफ्तार कर लिये गये।
उन पर निम्नलिखित आरोप लगाये गये-
1- शासन की अनुमति लिये बगैर भगीरथ ने साधना की। इससे कानून –व्यवस्था जितनी भी थी, उसे खतरा हो सकता था।
2- इस इलाके को पहले सूखा क्षेत्र माना गया था। अब यहां पानी आने से कैलकुलेशन गड़बड़ा गये। पहले इसे सूखा क्षेत्र मानते हुए यहां तर किस्म की ग्रांट-सब्सिडी की व्यवस्था की गयी थी योजना में। अब दरअसल पूरी योजना ही गड़बड़ा गयी। यह सिर्फ भगीरथ की वजह से हुआ। योजना प्रक्रिया को संकट में डालने का अपराध देशद्रोह के अपराध से कम नहीं है।
3- भगीरथ ने विदेशों से आ रही मदद, रकम में बाधा पैदा करके राष्ट्र को बहुमूल्य विदेशी मुद्रा से वंचित किया है। इस क्षेत्र के जल संकट को निपटाने के लिए फ्रांस के एनजीओ फाऊं-फाऊं फाउंडेशन और कनाडा के एनजीओ खाऊं-खाऊं ट्रस्ट ने लोकल एनजीओज (संयोगवश जिनकी संचालिकाएं स्थानीय ब्यूरोक्रेट्स की पत्नियां थीं) को कई अरब डालर देने का प्रस्ताव दिया था। अब जल आ गया, तो इन एनजीओज को संकट हो गया। फ्रांस और कनाडा के एनजीओज ने सहायता कैंसल कर दी। इस तरह से भगीरथ ने गंगा द्वितीय को बहाकर विदेशी मदद को अवरुद्ध कर दिया। भारत को विदेशी मुद्रा से वंचित करना देशद्रोह के अपराध से कम नहीं है।
4- पहाड़ को फोड़कर गंगा द्वितीय जिस तरह से प्रकट हुई हैं, उससे इस क्षेत्र का नक्शा बदल गया है, जो हरिद्वार नगर पालिका या किसी और नगर पालिका ने पास नहीं किया है।
5- शासन की सम्यक संस्तुति के बगैर जिस तरह से नदी निकली है, वह हो न हो, किसी दुश्मन की साजिश भी हो सकती है।
गिरफ्तार भगीरथ जेल में चले गये, उनको केस लड़ने के लिए कोई वकील नहीं मिला, क्योंकि सारे वकील पानी कंपनियों ने सैट कर लिये थे।
लेटेस्ट खबर यह है कि गंगा निकालना तो दूर अब भगीरथ खुद को जेल से निकालने का जुगाड़ नहीं खोज पा रहे हैं।
सोमवार, 14 फ़रवरी 2011
शुक्रवार, 11 फ़रवरी 2011
इन प्यार की गलियों से गुजर कर तो देखो
प्यार तो सिर्फ प्यार है उसकी कोई परिभाषा नहीं है, शायद इसीलिए कहते हैं कि प्यार के मायने वही समझ सकता है जो उसकी गहराईयों में उतकर उसके एक – एक पाठ को पढ़ता है। प्यार जीवन की सच्चाई है जिसे समझने के लिए इसकी गहराईयों तक जाना पड़ता है। यह तो एक समुद्र है जिसे किनारे से देखकर उसकी गहराई का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता। प्यार जीवन का हर उमंग है तो गहरी पीढ़ा भी । उमंग, अपने साथी को पाने और उसके साथ खुशनुमा जिंदगी बिताने की, तो पीढ़ा सिर्फ उससे एक – दो पल बिछड़ने की नहीं बल्कि ता उम्र उसकी चाहत में जिंदगी बिताने की। प्यार, खुशनुमा अहसास है संसार की दुश्विारियों और बंधनों से लड़ने के बीच अपने साथी के साथ जिंदगी बिताने का। प्यार, जुनून है अपने साथी की खुशी और उसे पाने के लिए कुछ भी कर जाने का। यह वह बहार है जो वीरान और बंजर जिंदगी में उमंगो और आशाओं के फूल खिला देती है जिसकी खुशबू से उन प्रेमियों की जिंदगी ही नहीं बल्कि पूरी कायनात महक उठती है।
अक्सर लोग आशिकी या अपने सिरफिनरेपन को प्यार समझ बैठते हैं और कुछ ही मुलाकातों में अपना सब कुछ न्योछावर करने से लेकर चांद तारे तोड़कर कदमों में रखने की बातें करते हैं और प्यार ना मिले तो देवदास बने घूमते हैं। लेकिन प्यार तो कुछ और ही है जो ना तो अपने साथी से चांद तारे की ख्वाहिश रखता है और ना ही कुछ पाने की । क्योंकि प्यार कुछ पाना नहीं है, यह तो समर्पण है अपने साथी के प्रति खुद का। फिर ना तो कुछ मेरा होता है और ना तेरा। सच्चे प्रेम में ढूबकर ही प्रेमी दो जिस्म एक जान होते हैं, जिसमें अहं और स्वार्थ की कोई जगह नहीं होती। अहं के होते हुए ना तो प्रेम हो सकता है और ना ही ईश्वर की भक्ति। कबीर दास जी ने कहा है, “जब ‘मैं’ था तब हरि नहीं, अब हरि है ‘मैं’ नाहि। जहां प्रेम होता है वहां ईश्वर भी वास करते हैं। हमारे सूफी संतों ने शायद इसीलिए प्यार को ईश्वर की उपासना के बराबर माना और पूरे संसार में इसका पैगाम दिया।
प्यार सच्चा है तो अपने साथी से विछोह की पीढ़ा, जीवन को अंधकार की ओर नहीं ढकेलती बल्कि उसे प्रेरित करती है कि वह समाज के उत्ताथन के लिए खुद को समर्पित कर दे। ताकि किसी और का प्रेम अधूरा ना रह जाए। अपने साथी से अलग होने की पीढ़ा को झेलता हुए प्रेमी समाज को एक नई दिशा देने में लग जाता है और अटूट मेहनत करता है, इस उम्मीद के साथ कि एक दिन उसका प्यार उसे उसकी इस मेहनत के परिणाम स्वरूप किसी ना किसी रूप में जरूर मिलेगा। इस तरह प्यार का यह पुष्प जो दो दिलों के बीच खिलता है पूरे समाज को सुगंधित करता है और बदलाव की एक नई बयार लाता है।
प्यार में बंदिशें नहीं होती प्यार तो स्वच्छंद है उस परिंदे की तरह जो खुले आकाश में उड़कर वापस वहीं आता है जहां से उड़ा था। अगर किसी से सच में प्यार है तो उसे कसमों और वादों के बंधनों में मत बंधों। साथी के प्रति वफादारी और प्यार पर अटूट विश्वास ही प्यार की दिशा को निर्धारित करता है। प्यार की नींव कसमें और वादे मजबूत नहीं बनाते, उसे मजबूत बनाता विश्वास और एक मजबूत नींव ही आशियाना तैयार करती है। हां,,, वही आशियाना जहां दोनों अपनी जिंदगी के हसीं पल बिताते हैं।
अक्सर लोग आशिकी या अपने सिरफिनरेपन को प्यार समझ बैठते हैं और कुछ ही मुलाकातों में अपना सब कुछ न्योछावर करने से लेकर चांद तारे तोड़कर कदमों में रखने की बातें करते हैं और प्यार ना मिले तो देवदास बने घूमते हैं। लेकिन प्यार तो कुछ और ही है जो ना तो अपने साथी से चांद तारे की ख्वाहिश रखता है और ना ही कुछ पाने की । क्योंकि प्यार कुछ पाना नहीं है, यह तो समर्पण है अपने साथी के प्रति खुद का। फिर ना तो कुछ मेरा होता है और ना तेरा। सच्चे प्रेम में ढूबकर ही प्रेमी दो जिस्म एक जान होते हैं, जिसमें अहं और स्वार्थ की कोई जगह नहीं होती। अहं के होते हुए ना तो प्रेम हो सकता है और ना ही ईश्वर की भक्ति। कबीर दास जी ने कहा है, “जब ‘मैं’ था तब हरि नहीं, अब हरि है ‘मैं’ नाहि। जहां प्रेम होता है वहां ईश्वर भी वास करते हैं। हमारे सूफी संतों ने शायद इसीलिए प्यार को ईश्वर की उपासना के बराबर माना और पूरे संसार में इसका पैगाम दिया।
प्यार सच्चा है तो अपने साथी से विछोह की पीढ़ा, जीवन को अंधकार की ओर नहीं ढकेलती बल्कि उसे प्रेरित करती है कि वह समाज के उत्ताथन के लिए खुद को समर्पित कर दे। ताकि किसी और का प्रेम अधूरा ना रह जाए। अपने साथी से अलग होने की पीढ़ा को झेलता हुए प्रेमी समाज को एक नई दिशा देने में लग जाता है और अटूट मेहनत करता है, इस उम्मीद के साथ कि एक दिन उसका प्यार उसे उसकी इस मेहनत के परिणाम स्वरूप किसी ना किसी रूप में जरूर मिलेगा। इस तरह प्यार का यह पुष्प जो दो दिलों के बीच खिलता है पूरे समाज को सुगंधित करता है और बदलाव की एक नई बयार लाता है।
प्यार में बंदिशें नहीं होती प्यार तो स्वच्छंद है उस परिंदे की तरह जो खुले आकाश में उड़कर वापस वहीं आता है जहां से उड़ा था। अगर किसी से सच में प्यार है तो उसे कसमों और वादों के बंधनों में मत बंधों। साथी के प्रति वफादारी और प्यार पर अटूट विश्वास ही प्यार की दिशा को निर्धारित करता है। प्यार की नींव कसमें और वादे मजबूत नहीं बनाते, उसे मजबूत बनाता विश्वास और एक मजबूत नींव ही आशियाना तैयार करती है। हां,,, वही आशियाना जहां दोनों अपनी जिंदगी के हसीं पल बिताते हैं।
ये कांग्रेस का ‘हाथ’ नहीं ‘हंटर’ है
महंगाई अपने चरम पर है। कांग्रेस का हाथ अब आम आदमी के सर से फिसल कर उद्योगपतियों और घोटालेबाजों के कंधों पर आ गया। पीएम मनमोहन सिंह अब जनता के सवालों के जवाब देने में भी लाचार नजर आ रहे हैं, और तो और अब वे इसे खुले आम स्वींकार चुके हैं कि महंगाई और भ्रष्टाचार ने उनकी सरकार की छवि को देश ही नहीं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर धूमिल किया है। एक प्रधानमंत्री होने के नाते अगर वे जनता की समस्याओं को नहीं समझ सकते तो उन्हें कोई हक नहीं बनता कि वह इस पद पर रहें। सिर्फ गलती स्वीकारने भर से वह अपने कर्तव्य से बच नहीं सकते। ताज्जु्ब की बात तो यह हैं कि एक देश का मुखिया बजाए कि कोई कार्यवाही करने के सिर्फ अपनी सरकार की कमजोरियों को गिना रहा है जबकि उसके पास पूरे अधिकार हैं कि वह इन घोटेलेबाजों को सजा दे। एक ओर जहां वह जनता के सामने अपनी गलतियों की माफी मांग रहे हैं वहीं दूसरी ओर अपराधियों को संरक्षण देने में भी कोई कसर नहीं छोड़ रहे। जिस मुद्रदे को लेकर कांग्रेस सत्ता में आयी थी वह तो कहीं रह ही नहीं गया। कांग्रेस के जिस हाथ को वह आम आदमी के साथ बात रहे थे अब वह कहां है जब जनता महंगाई के आगे घुटने टेके हुए है।
हमारे देश की एक बहुत बड़ी आबादी आज भी एक दिन में इतना नहीं कमा पाती की वो भर पेट खाना खा सके। फिर प्रधानमंत्री को उन गरीबों का ध्यान क्यों नहीं आता जो किसी तरह से अपना जीवन यापन कर रहे हैं, ऐसी महंगाई में उनके पास एक ही विकल्प बचता है कि एक दिन ना खाकर दूसरे दिन खा लेंगे क्योंकि जितना वह कमाते हैं उससे वह इस महंगाई में हर दो दिन में एक बार ही खा सकते हैं। कमेटी और कानून बनाने से बेहतर होगा कि सरकार कोई ठोस कदम उठाए जिसका असर तत्काल प्रभाव से नजर आए।
हमारे देश की एक बहुत बड़ी आबादी आज भी एक दिन में इतना नहीं कमा पाती की वो भर पेट खाना खा सके। फिर प्रधानमंत्री को उन गरीबों का ध्यान क्यों नहीं आता जो किसी तरह से अपना जीवन यापन कर रहे हैं, ऐसी महंगाई में उनके पास एक ही विकल्प बचता है कि एक दिन ना खाकर दूसरे दिन खा लेंगे क्योंकि जितना वह कमाते हैं उससे वह इस महंगाई में हर दो दिन में एक बार ही खा सकते हैं। कमेटी और कानून बनाने से बेहतर होगा कि सरकार कोई ठोस कदम उठाए जिसका असर तत्काल प्रभाव से नजर आए।
मंगलवार, 1 फ़रवरी 2011
शाहजहांपुर हादसा: अब ये बेरोजगारी जान पर हावी होने लगी
जुगजुग जियो बेटा, सफल होकर आना,,,,यही दुआ दी होंगी हर उस मां ने, जिसने शाहजहांपुर ट्रेन हादसे में अपने सपूत को खो दिया। उस मां को क्या मालूम था कि जिस बेटे की खुशी और उज्जनवल भविष्य के लिए घर से बाहर भेज रही है, वह कभी लौटकर वापस ही नहीं आएगा। बेरोजगारी और अव्यवस्था ने एक बार फिर कई मां-बाप के सपनों को तार-तार कर दिया। बरेली में आईटीबीपी की भर्ती देखने करीब 12 राज्यों के लाखों छात्र एकत्रित हुए थे। ऐसा पहली बार नहीं था जब अपनी बेरोजगारी को दूर करने के लिए इतनी बड़ी संख्या में छात्र अपने-अपने शहरों से दूसरे शहरों में गए हों। खुली भर्ती ही नहीं रेलवे, बैंक और बहुत सी परीक्षाओं के परीक्षा केंद्र अक्सर कुछ गिने-चुने शहरों को बनाया जाता है। जबकि इनमें सम्मिलित होने के लिए देश के हर कोने से छात्र इन शहरों में आते हैं। इन परीक्षाओं से एक से दो दिन पहले स्टेशन से लेकर फुटपाथ तक में खुले आसमां के नीचे इन छात्रों को अपने सुनहरे भविष्य के सपनों को बुनते देखा जा सकता है। दिन-रात का सफर तय करके ये छात्र सिर्फ इस उम्मीद के साथ परीक्षा में सम्मिलित होने आते हैं कि इसमें सफल होकर एक दिन वह अपने मां-बाप का सहारा बनेंगे और देश की सेवा करेंगे। लेकिन इन छात्रों की सुरक्षा की जरूरत ना तो इन भर्ती और परीक्षाओं को आयोजित करने वाली संस्थाओं को महसूस होती है और ना ही सरकार और प्रशासन को। और वह बेबस मां बाप भी क्या करें जो ना चाहते हुए भी अपने जिगर के टुकड़े को खुद से दूर उस भीड़ में जाने देते हैं, जिसमें अपनी संतान को खोने का डर उन्हें तब तक सताता रहता है जब तक वह सही सलामत वापस नहीं आ जाता।
इतनी बड़ी संख्या में छात्रों का एक शहर से दूसरे शहर में आने-जाने के लिए सरकार भी परिवहन की कोई व्यवस्था नहीं करती। घर लौटन की जल्दी और साधन ना मिलने की वजह से अक्सर छात्र कुछ ऐसा करने को मजबूर हो जाते हैं जो नियम-कानून के खिलाफ होता है। माना कि जवानी के जोश में वे कुछ गलतियां करते हैं जिसका खामियाजा उन्हें इस तरह के हादसों में जान देकर चुकाना पड़ता है लेकिन इसके लिए पूरी तरह उन्हेंं दोषी नहीं ठहराया जा सकता। अगर वह कुछ गलत कर रहे थे तो बरेली से इतनी दूर का सफर करने के दौरान उन्हें रोका क्यूं नहीं गया। ये काम तो प्रशासन का था। िफर प्रशासन ने अपनी ड्यूटी पूरी क्यों नहीं की। अगर प्रशासन उनके आने-जाने की समुचित व्यवस्था करे तो इस तरह के हादसों को रोका जा सकता है। साथ ही परीक्षा आयोजित करने वाली संस्थाएं जो परीक्षा फीस के नाम पर छात्रों से वसूली करती है, वह उसका प्रयोग सेंटर बढ़ाने में या परीक्षा को कई पारियों में आयोजित कराने में क्यों नहीं करतीं। अगर इस दिशा में जल्द ही कोई कदम नहीं उठाया गया तो शायद एक दिन मां बाप अपने बच्चों को इन परीक्षाओं में भेजने के बजाए घर पर बैठाना ज्यादा उचित समझेंगे। और अगर ऐसा होता है तो जिस देश की प्रतिभा का गुणगान प्रधानमंत्री विदेशों में करने से नहीं चूकते वह अपने ही देश में कहीं ढूंढने पर भी नहीं मिलेगी।
इतनी बड़ी संख्या में छात्रों का एक शहर से दूसरे शहर में आने-जाने के लिए सरकार भी परिवहन की कोई व्यवस्था नहीं करती। घर लौटन की जल्दी और साधन ना मिलने की वजह से अक्सर छात्र कुछ ऐसा करने को मजबूर हो जाते हैं जो नियम-कानून के खिलाफ होता है। माना कि जवानी के जोश में वे कुछ गलतियां करते हैं जिसका खामियाजा उन्हें इस तरह के हादसों में जान देकर चुकाना पड़ता है लेकिन इसके लिए पूरी तरह उन्हेंं दोषी नहीं ठहराया जा सकता। अगर वह कुछ गलत कर रहे थे तो बरेली से इतनी दूर का सफर करने के दौरान उन्हें रोका क्यूं नहीं गया। ये काम तो प्रशासन का था। िफर प्रशासन ने अपनी ड्यूटी पूरी क्यों नहीं की। अगर प्रशासन उनके आने-जाने की समुचित व्यवस्था करे तो इस तरह के हादसों को रोका जा सकता है। साथ ही परीक्षा आयोजित करने वाली संस्थाएं जो परीक्षा फीस के नाम पर छात्रों से वसूली करती है, वह उसका प्रयोग सेंटर बढ़ाने में या परीक्षा को कई पारियों में आयोजित कराने में क्यों नहीं करतीं। अगर इस दिशा में जल्द ही कोई कदम नहीं उठाया गया तो शायद एक दिन मां बाप अपने बच्चों को इन परीक्षाओं में भेजने के बजाए घर पर बैठाना ज्यादा उचित समझेंगे। और अगर ऐसा होता है तो जिस देश की प्रतिभा का गुणगान प्रधानमंत्री विदेशों में करने से नहीं चूकते वह अपने ही देश में कहीं ढूंढने पर भी नहीं मिलेगी।
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