बुधवार, 9 सितंबर 2015

किसानों की जान से जरूरी मीट पर बैन।

महाराष्‍ट्र में पिछले एक हफ्ते में 30 से ज्‍यादा किसानों ने अात्‍महत्‍या कर ली। इस साल अब तक कुछ 660 किसानों ने अार्थिक तंगी से परेशाान होकर खुद को मौत के हवाले कर लिया है। पिछले साल यह संख्‍या 628 थी। अपने हाथों में तख्‍ती लिए किसान गांव की पगडंडियों में ध्‍ारना दे रहे हैं। उन्‍हें लगता है कि शायद इन पगड़डियों से गुजरता कोई पत्रकार या नेता उनकी अावाज को सरकार तक पहुंचा देगा और बद से बदतर होती उनकी हालत के सुधार के लिए कोई सुध लेगा। बादलों के घिरते ही उन्‍हें धरना छोड़ अपने खेतों की अोर भागना पड़ता है जहां पड़ा अनाज सड़ने की कगार पर है। कुछ मौसम की मार ने उन्‍हें बर्बाद किया अब जो कुछ फसल बची है उसे सरकार खरीद नहीं रही है। बारशि में सड़ती उनकी फसल पर शराब और पैकेजिंग इंडस्‍ट्री गिद्द की तरह नजर गड़ाए बैठी है कि कब उनकी हिम्‍मत जवाब दे और वो खून पसीने से सीचकर पैदा की गई अपनी फसल को कौड़ियों के भाव उनके हाथ बेचे।

किसानों के हालत की ये बानगी पढ़कर शायद आपको थोड़ा दुख हो लेकिन अगले ही पल अगर मैं आपसे देश की सबसे बड़ी समस्‍या पूछूं तो शायद आपका जवाब भ्रष्‍टाचार, आरक्षण, राजनीति या संसद का न चलना होता। किसी गजेंद्र की मौत के साथ किसानों की समस्‍या मीडिया के लिए देश की सबसे बड़ी समस्‍या बनती है अौर सनी लियोन पर किसी मंत्री के बयान के बाद वो अंदर के किसी पन्‍ने पर एक कॉलम तक सिमटते हुए खबरों के इस संसार में कहीं खो जाती है। अखबार की सुर्खियों से गायब होते ही हमारे लिए उस समस्‍या का समाधान हो जाता है। लेकिन वास्‍तवतिकता यह है कि गांवों की पगड़डियों में बैठे किसान शाम को ढलता देखते हुए रोज सर झुकाए अपने घर चले जाते हैं और अगले दिन का अखबार पलट पलट कर देखते हैं कि कहीं ि‍कसी ने उनकी सुध ली या नहीं।

सालों से यही होता आ रहा है आगे भी यही होता रहेगा। मुआवजे के रूप में दो रुपए का चेक देकर उनका मजाक उड़ाओ। उन्‍हें मरने की कगार तक तो पहुंचा ही दिया है। सिलसिला जारी है। और शायद तब तक जारी रहेगा जब तक किसान यह बात स्‍वीकार न कर लें कि किसानी फायदे का सौदा नहीं है। जमीन बेकार की चीज है। इसे बेच देना ही बेहतर है। सरकार ठीक ही कहती है जमीन खेती के लिए नहीं मल्‍टीप्‍लेक्‍स अौर इंडस्‍ट्रीज के लिए है। यही विकास है। किसान इस विकास में बाधक है। अच्‍छा है वो खुद विकास के रास्‍ते से हट रहे हैं। जब वो हटना बंद कर देंगे तो सरकार उन्‍हें हटाने का काम शुरू करेगी। तब हमारे अापके लिए देश की सबसे बड़ी समस्‍या किसान होंगे ठीक उसी तरह जैसे आज आतंकवाद है।

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