मंगलवार, 14 फ़रवरी 2012

हत्‍याओं से घोटाले को दबाने की साजिश

एनआरएचएम में डॉ.शैलेश यादव की रोड एक्सीडेंट में हुई मौत एक
इत्तेफाक हो सकती। लेकिन इस बात को कैसे नजरंदाज किया जाए कि इस घोटाले
में सामने आने वाले हर अधिकारी की एक के बाद हत्या कर दी गई। इससे पहले
जेल में हुई डॉ. सचान की मौत भी अब तक अनसुलझी पहेली बनी हुई है। इस
घोटाले में जिन अधिकारियों की हत्याएं हुई बेशक उनके मुंह खोलने पर
घोटाले से जुड़े बड़े खिलाडिय़ों के नाम सामने आ सकते थे। लेकिन जिस तरह
से अधिकारियों के मुंह खोलने से पहले ही उनकी हत्या की गई उससे तो यही
प्रतीत होता है कि हत्यारों की जड़े सत्ता में गहरी जमी हुई हैं। खुद को
बचाने के लिए इन अधिकारियों की हत्याएं कराईं गई और इन हत्याओं के जरिए
जांच को भटकाने का पूरा प्रयास किया गया।
प्रदेश सरकार ने भले ही पूरी तत्परता दिखाते हुए इस मामले को सीबीआई को
हस्तांतरित कर दिया था, लेकिन उसकी भूमिका भी संदिग्ध नजर आ रही है।


माध्यमिक शिक्षा परिषद में उजागर हुआ घोटाला भी एक बड़ी रकम की उगाही के
लिए किया जा रहा था। किसी विभाग के इतने बड़े अधिकारी का सीधे तौर पर
भ्रष्टाचार में लिप्त होना कोई सामान्य घटना नहीं हो सकती। इसमें प्रदेश
सरकार के लिप्त होने और उसके दबाव को भी नकारा नहीं जा सकता। आखिर प्रदेश
सरकार की आंखो तले इतने बड़े स्तर का घोटाला कैसे हुआ।
इन दोनों ही घोटालों में पकड़े गए आला अधिकारियों ने अपनी सुरक्षा और समय
आने पर राज खोलने की बात को कहा है। अगर माध्यमिक शिक्षा परिषद के निदेशक
संजय मोहन ने किसी राजनैतिक दबाव में यह घोटाला किया है तो उनकी जान को
भी खतरा हो सकता है।

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