बुधवार, 9 सितंबर 2015

हम भ्‍ाारतीय होने पर गर्व करते हैं और वो हम पर राज करते हैं।


कुछ दिन पहले एक वीडियो फेसबुक पर खूब शेयर हुआ। 15 अगस्‍त के अास पास । वीडियो में एक दंपति शाम के समय अपनी बाइक पर जाते नजर अाते हैं। तभी पी‍छे से एक अंग्रेज उन्‍हें अपनी कार से टक्‍कर मार देता है। बुरी तरह घायल दंपत्ति पास के एक रेस्टोरेंट में पानी और प्राथमिक उपचार के लिए घुस जाते हैं। वहां पर ज्‍यादातर अंग्रेज होते हैं। भारतीय दंपति को घायल अवस्‍था में देखकर वहां के अग्रेंज मैनेजर को गुस्‍सा आ जाता है और उन्‍हें रेस्‍टोरेंट से धक्‍का मारकर बाहर निकाल देता है। जिसे देखकर आपके मन में अंग्रेजों के प्रति घ्रणा का भ्‍ााव आता है।

इस वीडियो को देखकर अापको एक बारगी एेसा लगेगा जैसे यह घटना किसी अन्‍य देश में घटित हुई है लेकिन अगले ही पल स्‍क्रीन पर नजर अाने वाला मैसेज आपको बताएगा कि अगर हम आजाद नहीं हुए होते तो आज भारत में हमारी स्थिति कुछ ऐसी ही होती। हम अपने ही देश में बेगाने से होते। दूसरे अर्थों में कहें तो अापको आजादी के महत्‍व को समझाने और एक लोकतांत्रिक देश का नागरिक होने पर गर्व करने के लिए प्रेरित करने का प्रयास किया गया इस वीडियो में।

हमें अंग्रेजों के राज से आजादी मिली, अच्‍छी बात है। लेकिन सवाल यह उठता है कि बार बार इस बात को याद दिलाकर हमें इस बात पर गर्व करने के लिए सरकार प्रेरित क्‍यों करना चाहती है। हाल ही में संघ को मोदी सरकार द्वारा इस बात का आस्‍वासन दिया गया है कि वो देश के शिक्षा पाठ्यक्रम में ऐसे बदलाव करेंगे जिससे भारतीयता और भ्‍ाारतीय गौरव को बढ़ावा मिले। इस बदलाव के तहत भारत अौर पड़ोसी देशों के बीच हुए युद्धों से जुड़े अध्‍यायों को पाठ्यक्रम में शामिल किया जाएगा।

देश के नागरिकों में भारतीयता को बढ़ाने के इन जैसे कई अौर प्रयासों को आप गौर से देखेंगे तो पाएंगे कि ये एक ओर तो यह आपको भारतीयता पर गर्व करने को प्रेरित करते हैं वहीं दूसरी ओर किसी दूसरे देश, संस्‍कृति या धर्म के प्रति घ्रणा का भ्‍ााव पैदा करते हैं। अाखिर इसकी आवश्‍यकता क्‍या है? क्‍या लोग ये भूल रहे हैं वो किस देश के नागरिक हैं? या उनका इस लोकतांत्रिक व्‍यवस्‍था पर विश्‍वास ढगमगाने लगा है, जिसे पुन: कायम करने के लिए इस तरह के प्रयासों की जरूरत महसूस हो रही है।

अगर ऐसा हो रहा है तो उससे नुकसान किसका होगा? जाहिर है उनका जो इसे बढ़ाने के लिए जी जान से जुटे हैं। जो जय जवान यह किसान के नारे लगाकर वोट लेकर सत्‍ता हासिल कर लेते हैं। लेकिन जब वही जवान वन रैंक वन पेंशन की मांग करते हैं या किसान अपनी जमीन न लेने की गुहार लगाते हैं तो उन्‍हें लाठियों से पिटवाते हैं। जिनके लिए सत्‍ता में अाने से पहले जनता और जनता के मुद्दे ही सबकुछ होते हैं और सत्‍ता में आने के बाद वे मुद्दे बस मुद्दे बनकर ही रह जाते हैं।

वास्‍तव‍िकता यह है कि भारतीय गौरव की इस भावना से एक आम आदमी के जीवन में कोई फर्क नहीं पढ़ता। हां, इस तथाकथ‍ित लोकतांत्रिक व्‍यवस्‍था में सत्‍ता को हथ‍ियाने और जनता पर शासन करने के लिए बहुत जरूरी है कि जनता का विश्‍वास इस पर कायम रखा जाए। ये सारे प्रयास अपनी सत्‍ता पाने की उस व्‍यवस्‍था को सुरक्षित बनाए रखने के लिए है जो पूंजीपतियों की जागीर है। अगर यकीन न हो तो कभी गंदे अौर भद्दे कपड़ों में किसी पांच सतारा होटल में घुसकर देखिए आपको उसी तरह बाहर फेक दिया जाएगा जैसे वीडियो में उस घायल दंपति को उन अंग्रेजों ने फेका।

किसानों की जान से जरूरी मीट पर बैन।

महाराष्‍ट्र में पिछले एक हफ्ते में 30 से ज्‍यादा किसानों ने अात्‍महत्‍या कर ली। इस साल अब तक कुछ 660 किसानों ने अार्थिक तंगी से परेशाान होकर खुद को मौत के हवाले कर लिया है। पिछले साल यह संख्‍या 628 थी। अपने हाथों में तख्‍ती लिए किसान गांव की पगडंडियों में ध्‍ारना दे रहे हैं। उन्‍हें लगता है कि शायद इन पगड़डियों से गुजरता कोई पत्रकार या नेता उनकी अावाज को सरकार तक पहुंचा देगा और बद से बदतर होती उनकी हालत के सुधार के लिए कोई सुध लेगा। बादलों के घिरते ही उन्‍हें धरना छोड़ अपने खेतों की अोर भागना पड़ता है जहां पड़ा अनाज सड़ने की कगार पर है। कुछ मौसम की मार ने उन्‍हें बर्बाद किया अब जो कुछ फसल बची है उसे सरकार खरीद नहीं रही है। बारशि में सड़ती उनकी फसल पर शराब और पैकेजिंग इंडस्‍ट्री गिद्द की तरह नजर गड़ाए बैठी है कि कब उनकी हिम्‍मत जवाब दे और वो खून पसीने से सीचकर पैदा की गई अपनी फसल को कौड़ियों के भाव उनके हाथ बेचे।

किसानों के हालत की ये बानगी पढ़कर शायद आपको थोड़ा दुख हो लेकिन अगले ही पल अगर मैं आपसे देश की सबसे बड़ी समस्‍या पूछूं तो शायद आपका जवाब भ्रष्‍टाचार, आरक्षण, राजनीति या संसद का न चलना होता। किसी गजेंद्र की मौत के साथ किसानों की समस्‍या मीडिया के लिए देश की सबसे बड़ी समस्‍या बनती है अौर सनी लियोन पर किसी मंत्री के बयान के बाद वो अंदर के किसी पन्‍ने पर एक कॉलम तक सिमटते हुए खबरों के इस संसार में कहीं खो जाती है। अखबार की सुर्खियों से गायब होते ही हमारे लिए उस समस्‍या का समाधान हो जाता है। लेकिन वास्‍तवतिकता यह है कि गांवों की पगड़डियों में बैठे किसान शाम को ढलता देखते हुए रोज सर झुकाए अपने घर चले जाते हैं और अगले दिन का अखबार पलट पलट कर देखते हैं कि कहीं ि‍कसी ने उनकी सुध ली या नहीं।

सालों से यही होता आ रहा है आगे भी यही होता रहेगा। मुआवजे के रूप में दो रुपए का चेक देकर उनका मजाक उड़ाओ। उन्‍हें मरने की कगार तक तो पहुंचा ही दिया है। सिलसिला जारी है। और शायद तब तक जारी रहेगा जब तक किसान यह बात स्‍वीकार न कर लें कि किसानी फायदे का सौदा नहीं है। जमीन बेकार की चीज है। इसे बेच देना ही बेहतर है। सरकार ठीक ही कहती है जमीन खेती के लिए नहीं मल्‍टीप्‍लेक्‍स अौर इंडस्‍ट्रीज के लिए है। यही विकास है। किसान इस विकास में बाधक है। अच्‍छा है वो खुद विकास के रास्‍ते से हट रहे हैं। जब वो हटना बंद कर देंगे तो सरकार उन्‍हें हटाने का काम शुरू करेगी। तब हमारे अापके लिए देश की सबसे बड़ी समस्‍या किसान होंगे ठीक उसी तरह जैसे आज आतंकवाद है।

मंगलवार, 14 फ़रवरी 2012

हत्‍याओं से घोटाले को दबाने की साजिश

एनआरएचएम में डॉ.शैलेश यादव की रोड एक्सीडेंट में हुई मौत एक
इत्तेफाक हो सकती। लेकिन इस बात को कैसे नजरंदाज किया जाए कि इस घोटाले
में सामने आने वाले हर अधिकारी की एक के बाद हत्या कर दी गई। इससे पहले
जेल में हुई डॉ. सचान की मौत भी अब तक अनसुलझी पहेली बनी हुई है। इस
घोटाले में जिन अधिकारियों की हत्याएं हुई बेशक उनके मुंह खोलने पर
घोटाले से जुड़े बड़े खिलाडिय़ों के नाम सामने आ सकते थे। लेकिन जिस तरह
से अधिकारियों के मुंह खोलने से पहले ही उनकी हत्या की गई उससे तो यही
प्रतीत होता है कि हत्यारों की जड़े सत्ता में गहरी जमी हुई हैं। खुद को
बचाने के लिए इन अधिकारियों की हत्याएं कराईं गई और इन हत्याओं के जरिए
जांच को भटकाने का पूरा प्रयास किया गया।
प्रदेश सरकार ने भले ही पूरी तत्परता दिखाते हुए इस मामले को सीबीआई को
हस्तांतरित कर दिया था, लेकिन उसकी भूमिका भी संदिग्ध नजर आ रही है।


माध्यमिक शिक्षा परिषद में उजागर हुआ घोटाला भी एक बड़ी रकम की उगाही के
लिए किया जा रहा था। किसी विभाग के इतने बड़े अधिकारी का सीधे तौर पर
भ्रष्टाचार में लिप्त होना कोई सामान्य घटना नहीं हो सकती। इसमें प्रदेश
सरकार के लिप्त होने और उसके दबाव को भी नकारा नहीं जा सकता। आखिर प्रदेश
सरकार की आंखो तले इतने बड़े स्तर का घोटाला कैसे हुआ।
इन दोनों ही घोटालों में पकड़े गए आला अधिकारियों ने अपनी सुरक्षा और समय
आने पर राज खोलने की बात को कहा है। अगर माध्यमिक शिक्षा परिषद के निदेशक
संजय मोहन ने किसी राजनैतिक दबाव में यह घोटाला किया है तो उनकी जान को
भी खतरा हो सकता है।

बुधवार, 6 अप्रैल 2011

थैंक्यू पूनम पांडे

क्रिकेट वर्ल्ड कप का अगर किसी ने पूरा फायदा उठाया तो वो हैं पूनम पांडे। एक स्टेटमेंट और पूरा मी‍डिया ही नहीं वर्ल्ड कप के दीवाने भी टीम इंडिया के जीतने का इंतजार करने लगे। करते भी क्यों ना पूनम पांडे जो अपनी खुशी कपड़े उतार कर जाहिर करने वाली थी । वैसे देखा जाएं तो उतारने के िलए कुछ खास है नहीं उनके पास।लेकिन इंडिया ने मैच क्या जीता पूनम पांडे को मानों सांप सूंघ गया। वह किस बिल में छिप गई इसका पता नहीं चला। मीडिया के सर से जैसे ही वर्ल्ड कप भूत उतरा उन्हें नया बकरा चाहिए था तो लग गई पूनम पांडे के पीछे आखिर पूनम पांडे सामने आई लेकिन पूरी तैयारी के साथ कि सांप भी मर जाएं और लाठी भी ना टूटे। पूनम पांडे ने कहा कि वह अपने वादे से नहीं डिगेंगी और इसके लिए उन्होंने बीसीसीआई को पत्र भी लिखा है कि उन्हें ऐसा करने की परमिशन दी जाएं । जाहिर सी बात है कि ना तो बीसीसीआई ऐसा करने की उन्हें प‍रमिशन देने वाली है और ना ही वह कपड़े उतारने वाली हैं। ये तो वही बात हो गई कि ना नौ मन तेल होगा, न राधा नाचेगी।
खैर पूनम पांडे के कपड़े उतरे या ना उतरे भारतीय टीम को इसका फायदा जरूर मिला। जो लोग उसके समर्थन में नहीं भी थे वह भी उसके जीतने की दुआ करते नजर आएं और जब इतनी दुआएं टीम इंडिया के साथ थी तो भला वो हार कैसे सकती थी। इसके लिए भारतीय टीम ही नहीं भारतीय जनता को भी पूनम पांडे को धन्यवाद देना चाहिए।

शुक्रवार, 1 अप्रैल 2011

ufffff...! ये Facebook

मेरे एक मित्र हैं फेसबुक के बहुत बड़े फैन हैं। हालत यह है कि सुबह फेसबुक, शाम फेसबुक, दो‍पहर फेसबुक, रात फेसबुक, फेसबुक, फेसबुक और फेसबुक। फोन करो तो, यार फेसबुक पर आओ वहीं चैट कर लेते हैं। कहने को बैचलर हैं लेकिन अगर शादियां फेसबुक पर होने लगती तो अब तक रावण और कृष्ण भगवान की सैकड़ों बीवियां होने का रिकॉर्ड टूट गया होता।
बेचारे आजकल बड़े परेशान हैं। फेसबुक में कुछ अगड़म बगड़म हो गया है। उनके फेसबुक खाते में कुछ तकनीकी दिक्क्त आ गई है। ना मैसेज बॉक्स काम कर रहा है और ना ही चैटिंग। उनके उपयोग के दोनों जरूरी फीचर उनके खाते से नदारद हैं। ना जाने कितने मेल फेसबुक वालों को चिपका मारे लेकिन वहां तो कोई सुनने वाला है नहीं। परेशान होकर मुझे फोन किया हाल चाल पूछा और पहुंच एक प्वॉइंट की बात पर। यार ये फेसबुक वाले तो भारत सरकार से भी ज्यादा नकारे हैं सुनते ही नहीं है कब से दिक्कात आ रही है फेसबुक में, उन्हें समझ में ही नहीं आ रही है। कितने मेल किए ना कोई जवाब ना कोई कार्यवाही। उनकी परेशानी मुझसे देखी नहीं जाती बेचारे कब से फेसबुक वियोग में तड़प रहें हैं अगर आपके पास कोई सुझाव हो तो जरूर बताएं ……….
और अगर आप भी किसी पीढ़ा में है तो वहीं बता दीजिए,,कम से कम उन्हें एक साथी तो मिलेगा।

बुधवार, 9 मार्च 2011

चोर मचाए शोर, घोटालेबाज खामोश

हजारों करोड़ों के घोटालों के देखकर मोहल्ले के चुरकाटों में खलबली मच गई, छन्ने भईया इ बात सही नहीं है, बहुत नाइंसाफी है, हम िकसी की पॉकेट मारे तो इ खाकी चीटे ससुरे कुत्ते की तरह मारत हैं और जो देश के गरीबन का करोड़ो रुपया खा कर बैठे हैं उनका पीटना तो दूर एफआईआर भी ना दर्ज होत है जांच तो ऐसे बईठत है िक वा बईठ के ही रहि जात है खड़े होन का नाम ही ना लेत है,
अरे शांत हो जा,,,छन्ने नेता ने ‘छोटे’(ट्रेनी पाकेटमार अभी हाल ही में जेल से छूटा है) को शांत कराते हुए,,
यही के मारे इ सभा बुलाई है आखिर बिरादरी की नाक का सवाल है, हम समाज सेवक है, लेकिन इ घोटाले बाज तो देश की लुटिया ही डुबाने मा तुले हैं और बदनामी हमारे माथे मड़ रहे हैं,
( थोड़ी ही देर में कुछ पत्रकार वहां पहुंच गए )
आइये आइये पत्रकार भईया लोग हम आपका का ही इंतजार कर रहे राहय,

पत्रकार: हां तो क्या समस्या है आपकी?
छन्ने: भाई समस्या बड़ी गम्भीर है, उ का है कि देश में हो रहे इ घोटालन से हमार बिरादरी बड़ा परेशान है,

पत्रकार: वो क्यों?
छन्ने: भईया पहिला तो ये कि इ हाइप्रोफाइल चोर गरीब जनता का पईसा लूट रहे हैं और दूसर ये कि हमार सरकार बजाए कि कउनौ करवाई करन के जांच बईठाल देत हैं जो कबहूं खड़े होने का नाम ही नहीं लेत है,

पत्रकार: लेकिन चोरी तो आप भी करते हैं? ि‍फर उनसे इतनी नफरत क्यों ? आखिर हैं तो वो आपकी ही बिरादरी के ना,
छन्ने: नहीं साहब हममे और उनमें बहुत फर्क हैं हम चोरी समाज सेवा के ि‍लए करत हैं, और उ देश को लूटन के िलए.

पत्रकार: समाज सेवा? वो कैसे?
छन्ने: साहब हम कबहूं कउनौ गरीब या भिखारी को नहीं लूटत हैं लेकिन उ तो उनके ि‍लए आने वाले पईसा को भी नहीं छोडत, दूसरा हम समाज में पईसा को बराबर बांटन मा विश्वास रख्ा्त हैं जहां पईसा ज्यादा हो हुआ से हटा कर खर्च कर दो, आखिर इकोनॉमिक थोड़ी बहुत हमका भी आत है, पैसा रख्खन की चीज थोड़े ही ना है ओखा तो खर्च करो चाहि ता कि उ आगे बढ़त राहे और देश का बिकास हो,

पत्रकार: लेकिन किसी की सम्पीत्ति को लूटना कहां तक सही है?
छन्ने: महोदय आप फिर गलत बात बोल रहे हैं हम समाज सेवा करत हैं अगर हम अपने लिए करते तो कब का टाटा बिड़ला बन गए होते हम तो जईसन पहिले राहें वइसै आजहू हैं,

पत्रकार: अगर यह समाज सेवा है तो आप लोग खुलकर सामने क्यों नहीं आते?
छन्ने ने बोलन चाहा लेकिन छोटे बीच में ही बोल पड़ा: ये हीरोगिरी हमका नहीं करनी है, राजन का फोटो पेपर में छपा देखकर लल्लू को बड़ा शौक चढ़ा था अखबार में छपन का, एक बार हथ्थे चढ़े हैं खाखी चीटों के, तब से घर पर पड़े हैं और तो और कहीं कउंनौ चोरी हुई जाए चीटे वही का उठा ले जात है, और ठोक ठाक के वापस कर जात हैं,,,,,,,, अरे शांत हो जा छोटे,, छन्ने बोलकर पत्रकार की तरफ

पत्रकार: खाकी चीटे,,,,,!
छन्ने: अरे वही खाकी वर्दी वाले जिनका आप लोग पुलिस काहत हैं, ससुरन को जरा सा गुड़ ( घूस ) डाल देव तो तुमका छोड़ सबके सब गुड मा लाग जहियें फिर चाहे कउंनौ का मरडर काहे ना हुई जाए:

पत्रकार: तो आप लोग की समस्या क्या है?
छन्ने: साहब पहिले तो आप से एक रिकवेस्ट है कि हमारी छवि को खराब ना किया जाए, हम समाज में बराबरी लाने का प्रयास कर रहें हैं और आप लोग हैं कि हमार छवि बिगाड़न मा लगे हैं, आखिर धरा हुआ पईसा केखे काम आया है, हम तो उ पईसा को निकालकर बाहर ला रहे हैं ताकि वह लोगों के काम आ सके, असल दुश्मन तो इ घाटालेबाज हैं जो पइसा चुराकर बिदेश मा जमां कर देत हैं, अब आप ही बताओ देश का पईसा देश में रहब ठीक है या बिदेश मा ?
छन्ने में प्रश्नरवाचक नजरों से पत्रकार की ओर देखा, बाकी आप लोगन का हिया आवैं का बहुत बहुत धन्येवाद !!!

सोमवार, 14 फ़रवरी 2011

‘भगीरथ’ की गंगा मैली और ‘भगीरथ’ जेल में.

इंटरनेट भी एक अजीब भूल भुलैया है, कभी काम की चीज ढ़ूढो तो घंटों बीत जाने पर भी नहीं ि‍मलती और फोकट में उंगलियां चटकाने पर ऐसी चीज मिल जाती है कि उंगलियां तोड़ना सार्थक लगने लगता है ऐसा ही कुछ हुआ यूंही बैठा एक सॉफ्‍टवेयर सर्च कर रहा था लेकिन मिला एक लेख किसने लिखा इसका लेखा जोखा तो नहीं मिला लेकिन है बहुत मजेदार,,,,,भगीरथ के बारे में। भगीरथ मुनि को तो जानते ही होंगे। अरे वहीं जिनकी लायी गंगा में हम आज तक अपने पाप धुल रहे हैं । क्योंेकि गंगा में पाप की माञा के साथ केमिकल भी बढ़ गए तो बेचारे इस कलयुग में चले आए समाज सेवा करने, गंगा को दोबारा लोन के ि‍लए यानी गंगा पार्ट टू और ि‍फर जो ट्रेजडी हुई उनके साथ वह आप खुद ही पढ़ लीजिए….
भगीरथ स्वर्ग में लंबी साधना के बाद जब चैतन्य हुए, तो उन्होने पाया कि भारतभूमि पर पब्लिक पानी की समस्या से त्रस्त है। समूचा भारत पानी के झंझट से ग्रस्त है। सो महर्षि ने दोबारा गंगा द्वितीय को लाने की सोची। महर्षि भारत भूमि पर पधारे और मुनि की रेती, हरिद्वार पर दोबारा साधनारत हो गये।
मुनि की रेती पर एक मुनि को भगीरथ को साधना करते देख पब्लिक में जिज्ञासा भाव जाग्रत हुआ।
छुटभैये नेता बोले कि गुरु हो न हो, जमीन पक्की कर रहा है। ये अगला चुनाव यहीं से लड़ेगा। यहां से एक और कैंडीडेट और बढ़ेगा। बवाल होगा, पुराने नेताओं की नेतागिरी पर सवाल होगा।
पुलिस वालों की भगीरथ साधना कुछ यूं लगी-हो न हो, यह कोई चालू महंत है। जरुर साधना के लपेटे में मुनि की रेती को लपेटने का इच्छुक संत है। तपस्या की आड़ में कब्जा करना चाहता है।
खबरिया टीवी चैनलों को लगा है कि सिर्फ मुनि हैं, तो अभी फोटोजेनिक खबरें नहीं बनेंगी। फोटोजेनिक खबरें तब बनेंगी, जब मुनि की तपस्या तुड़वाने के लिए कोई फोटोजेनिक अप्सरा आयेगी। टीआरपी साधना में नहीं, अप्सराओं में निहित होती है। टीवी पर खबर को फोटूजेनिक होना मांगता।
नगरपालिका वालों ने एक दिन जाकर कहा-मुनिवर साधना करने की परमीशन ली है आपने क्या।
भगीरथ ने कहा-साधना के लिए परमीशन कैसी।
नगरपालिका वालों ने कहा-महाराज परमीशन का यही हिसाब-किताब है। आप जो कुछ करेंगे, उसके लिए परमीशन की जरुरत होगी। थोड़े दिनों में आप पापुलर हो जायेंगे, एमपी, एमएलए वगैरह बन जायेंगे, तो फिर आप परमीशन देने वालों की कैटेगरी में आयेंगे।
भगीरथ ने कहा-मैं साधना तो जनसेवा के लिए कर रहा हूं। सांसद मंत्री थोड़े ही होना है मुझे।
जी सब शुरु में यही कहते हैं। आप भी यही कहते जाइए। पर जो हमारा हिसाब बनता है, सो हमें सरकाइये-नगरपालिका के बंदों ने साफ किया।
देखिये मैं साधु-संत आदमी हूं, मेरे पास कहां कुछ है-भगीरथ ने कहा।
महाराज अब सबसे ज्यादा जमीन और संपत्ति साधुओं के पास ही है। न आश्रम, न जमीन, न कार, न नृत्य की अठखेलियां, ना चेलियां-आप सच्ची के साधु हैं या फोकटी के गृहस्थ। हे मुनिवर, आजकल साधुओं के पास ही टाप टनाटन आइटम होते हैं। दुःख, चिंता ,विपन्नता तो अब गृहस्थों के खाते के आइटम हैं-नगरपालिका वालों ने समझाया।
भगीरथ यह सुनकर गुस्सा हो गये और हरिद्वार-ऋषिकेश से और ऊपर के पहाड़ों पर चल दिये।
भगीरथ को बहुत गति से पहाड़ों की तरफ भागता हुआ सा देख कतिपय फोटोग्राफर भगीरथ के पास आकर बोले –देखिये, हम आपको जूते, च्यवनप्राश, अचार कोल्ड ड्रिंक, चाय, काफी, जूते, चप्पल जैसे किसी प्राडक्ट की माडलिंग के लिए ले सकते हैं।
पर माडलिंग क्या होती है वत्स-भगीरथ ने पूछा।
हा, हा, हा, हा हर समझदार और बड़ा आदमी इंडिया में माडलिंग के बारे में जानता है। आप नहीं जानते, तो इसका मतलब यह हुआ कि या तो आप समझदार आदमी नहीं हैं, या बडे़ आदमी नहीं हैं। एक बहुत बड़े सुपर स्टार को लगभग बुढ़ापे के आसपास पता चला कि उसकी धांसू परफारमेंस का राज नवरत्न तेल में छिपा है। एक बहुत बड़े प्लेयर को समझ में आया कि उसकी बैटिंग की वजह किसी कोल्ड ड्रिंक में घुली हुई है। आप की तेज चाल का राज हम किसी जूते या अचार को बना सकते हैं, बोलिये डील करें-फोटोग्राफरों ने कहा।
देखिये मैं जनसेवा के लिए साधना करने जा रहा हूं-भगीरथ ने गुस्से में कहा।
गुरु आपका खेल बड़ा लगता है। बड़े खेल करने वाले सारी यह भाषा बोलते हैं। चलिये थोड़ी बड़ी रकम दिलवा देंगे-एक फोटोग्राफर ने कुछ खुसफुसायमान होकर कहा।
जल संकट से द्रवित होकर जनता को परेशानी से निजात दिलाने के लिए गंगा द्वितीय को पृथ्वी पर लाने का उपक्रम करने लगे। इसके लिए वह हरिद्वार के पास मुनि की रेती पर साधनारत हुए तो नगरपालिका वालों ने, नेताओं ने और दूसरे तत्वों ने उन्हे परेशान किया। वह परेशान होकर ऊपर पहाड़ों पर जाने लगे, तो कई फोटोग्राफरों ने उनके सामने तरह-तरह के आइटमों के माडलिंग के प्रस्ताव रखे। फोटोग्राफरों ने उनसे कहा कि इस तरह की जनसेवा के पीछे उनका जरुर बड़ा खेल है और इस खेल के साथ वे चार पैसे एक्स्ट्रा भी कमा लें, तो हर्ज नहीं है।अब आगे पढ़िये समापन किस्त में।)
देखिये, ये क्या खेल-खेल लगा रखा है। क्यां यहां बिना खेल के कुछ नहीं होता क्या-भगीरथ बहुत गुस्से में बोले।
जी बगैर खेल के यहां कुछ नहीं होता। यहां गंगा इसलिए बहती है कि वह गंगा साबुन के लिए माडलिंग कर सके। गोआ में समुद्र इसलिए बहता है कि वह गोआ टूरिज्म के इश्तिहारों में काम आ सके। हिमालय के तमाम पहाड़ इसलिए सुंदर हैं कि उन्होने उत्तरांचल टूरिज्म, उत्तर प्रदेश टूरिज्म के इश्तिहारों में माडलिंग करनी है। आपकी चाल में फुरती इसलिए ही है कि वह किसी चाय वाले या च्यवनप्राश वाले के इश्तिहार में काम आ सके। आपके बाल अभी तक काले इसलिए हैं कि वे नवरत्न तेल के इश्तिहार के काम आ सकें। हे मुनि, डाल से चूके बंदर और माडलिंग के माल से चूके बंदों के पास सिवाय पछतावे के कुछ नहीं होता-एक समझदार से फोटोग्राफर ने उन्हे समझाया।
भगीरथ मुनि गु्स्से में और ऊंचे पहाड़ों की ओर चले गये।
कई बरसों तक साधना चली।
मां गंगा द्वितीय प्रसन्न हुईं और एक पहाड़ को फोड़कर भगीरथ के सामने प्रकट हुईं।
जिस पहाड़ को फोड़कर गंगा प्रकट हुई थीं, वहां का सीन बदल गया था। बहुत सुंदर नदी के रुप में बहने की तैयारी गंगा मां कर ही रही थीं कि वहां करीब के एक फार्महाऊस वाले के निगाह पूरे मामले पर पड़ गयी।
वह फार्महाऊस पानी बेचने वाली एक कंपनी का था।
गंगा द्वितीय जिस कंपनी के फार्महाऊस के पास से निकल रही हैं, उसी कंपनी का हक गंगा पर बनता है, ऐसा विचार करके उस कंपनी का बंदा भगीरथ के पास आया और बोला कि गंगा पर उसकी कंपनी की मोनोपोली होगी। वही कंपनी गंगा का पानी बेचेगी।
तब तक बाकी पानी कंपनियों को खबर हो चुकी थी।
बिसलेरी, खेंचलेरी, खालेरी, पालेरी, पचालेरी, फिनफिन, शिनशिन,छीनछीन समेत सारी अगड़म-बगड़म कंपनियों के बंदे मौके पर पहुंच लिये।
हर कंपनी वाला भगीरथ को समझा रहा था कि वह उसी की कंपनी को ज्वाइन कर ले। मुंहमांगी रकम दी जायेगी। गंगा द्वितीय उस कंपनी की संपत्ति हो जायेगी और भगीरथ को रायल्टी दे दी जायेगी।
पर भगीरथ नहीं माने। वह गंगा द्वितीय को जनता को समर्पित करना चाहते थे।
किसी कंपनी वाले की दाल नहीं गली।
पर……….।
सारी कंपनियों के बंदों ने आपस में खुसुर-पुसर की। खुसर-पुसर का दायरा बढ़ा, नगरपालिकाओं वाले आ गये। माहौल और खुसरपुसरित हुआ-भगीरथी की फ्यूचर पापुलरिटी की सोचकर आतंकित-परेशान नेता भी आ लिये। वाटर रिस्टोरेशन के लिए काम कर रहे एनजीओ के बंदे भी इस खुसर-पुसर में शामिल हुए।
फिर ………..भगीरथ गिरफ्तार कर लिये गये।
उन पर निम्नलिखित आरोप लगाये गये-
1- शासन की अनुमति लिये बगैर भगीरथ ने साधना की। इससे कानून –व्यवस्था जितनी भी थी, उसे खतरा हो सकता था।
2- इस इलाके को पहले सूखा क्षेत्र माना गया था। अब यहां पानी आने से कैलकुलेशन गड़बड़ा गये। पहले इसे सूखा क्षेत्र मानते हुए यहां तर किस्म की ग्रांट-सब्सिडी की व्यवस्था की गयी थी योजना में। अब दरअसल पूरी योजना ही गड़बड़ा गयी। यह सिर्फ भगीरथ की वजह से हुआ। योजना प्रक्रिया को संकट में डालने का अपराध देशद्रोह के अपराध से कम नहीं है।
3- भगीरथ ने विदेशों से आ रही मदद, रकम में बाधा पैदा करके राष्ट्र को बहुमूल्य विदेशी मुद्रा से वंचित किया है। इस क्षेत्र के जल संकट को निपटाने के लिए फ्रांस के एनजीओ फाऊं-फाऊं फाउंडेशन और कनाडा के एनजीओ खाऊं-खाऊं ट्रस्ट ने लोकल एनजीओज (संयोगवश जिनकी संचालिकाएं स्थानीय ब्यूरोक्रेट्स की पत्नियां थीं) को कई अरब डालर देने का प्रस्ताव दिया था। अब जल आ गया, तो इन एनजीओज को संकट हो गया। फ्रांस और कनाडा के एनजीओज ने सहायता कैंसल कर दी। इस तरह से भगीरथ ने गंगा द्वितीय को बहाकर विदेशी मदद को अवरुद्ध कर दिया। भारत को विदेशी मुद्रा से वंचित करना देशद्रोह के अपराध से कम नहीं है।
4- पहाड़ को फोड़कर गंगा द्वितीय जिस तरह से प्रकट हुई हैं, उससे इस क्षेत्र का नक्शा बदल गया है, जो हरिद्वार नगर पालिका या किसी और नगर पालिका ने पास नहीं किया है।
5- शासन की सम्यक संस्तुति के बगैर जिस तरह से नदी निकली है, वह हो न हो, किसी दुश्मन की साजिश भी हो सकती है।
गिरफ्तार भगीरथ जेल में चले गये, उनको केस लड़ने के लिए कोई वकील नहीं मिला, क्योंकि सारे वकील पानी कंपनियों ने सैट कर लिये थे।
लेटेस्ट खबर यह है कि गंगा निकालना तो दूर अब भगीरथ खुद को जेल से निकालने का जुगाड़ नहीं खोज पा रहे हैं।